गुरुवार

भूल गये हम सब कुछ

भूल गये हम सब कुछ ....
ऐसा लगता है
की
हम लोग अब सबकुछ भूल गये है.
ना याद है कुछ अपने
ना याद है कुछ उनकी
क्या लिया मैंने
क्या दिया मैंने
क्या खोया मैंने
क्या पाया मैंने
ऐसा लगता है
की
हम लोग सब कुछ भूल गये हैं.
ना याद है हमें किसी की दोस्ती
ना याद है हमें किसी की दुश्मनी
ना याद है किसी की ममता
ना याद है किसी की पूजा
ना याद है किसी का प्यार

ऐसा लगता है 
की 
हम लोग सब कुछ भूल गये हैं.
राह में चलते चलते
पता नहीं 
क्या सोचता हूँ
जो कुछ सोचता हूँ
पता नहीं 
कब भूल जाता हूँ
कब भूल जाता हूँ
पता नहीं 
वो कब भूल जाता हूँ
ऐसा लगता है 
की 
हम लोग सब कुछ भूल गये हैं.
कभी हमने सोचा 
नहीं था की 
ऐसा भी
दिन आएगा
अपने अपनों को
ऐसे आसूं रुलायेंगे 
जो कभी हमें 
अपने अस्सुओं से
हमें खुसी 
दिया करते थे
ऐसा लगता है 
की 
हम लोग सब कुछ भूल गये हैं.
वो दोस्ती 
वो प्यार
वो भीगीं आँखें 
वो मुश्कान
ऐसा लगता है 
की 
हम लोग सब कुछ भूल गये हैं.
बचपन में तो 
हम ऐसे नहीं थे
जवानी में ऐसा अब 
क्या हो
गया
की हम 
अपने घर का पता भी भूल  गये
ऐसा लगता है 
की 
हम लोग सब कुछ भूल गये हैं.
वो नन्हे उँगलियों को थम 
कर जिसने 
चलना सिखाया
वो नन्हे उगलियाँ 
अब इतने कड़े हो
गये की
उन्ही को तोड़ने का फैसला कर लिए
ऐसा लगता है 
की 
हम लोग सब कुछ भूल गये हैं.
क्या होगा 
पता नहीं
क्या करना है 
पता नहीं
कहा जाना है 
पता नहीं
ऐसा लगता है 
की 
हम लोग सब कुछ भूल गये हैं.
कहा जाना है 
कहा jaa rha  हूँ
raste तो wahi 
हैं magar manjil alag हो गये
ऐसा लगता है 
की 
हम लोग सब कुछ भूल गये हैं.




सोमवार

जिंदगी के खूबसूरत क्षण

क्या क्षण थे ,
कभी हमारे जिन्दगी के
कभी हँसते ,
कभी रोते थे.
फिर भी हमें कोई
गम नहीं था
क्यूँकी  हमारे चाहने वाले कई थे .
हर रोज कटता था
मजे में
खुशियों में
ना किसी की चिंता थी
ना किसी के ले कोई ख़ुशी थी
सिर्फ अपने धुन की
मस्ती में
मुस्कुराता
और
गमगीन
रहता था.
क्या दूसरा
और क्या अपना
सभी कुछ
एक सा
लगता था
क्यूंकि मुझे पता नहीं था
की दुनिया भी कोई चीज है
इसलिए हमेशा ही मगन रहता था.
सभी मेरे लिए अनजाने थे
बेगाने थे
इसलिए तो हमें
किसी से ना कोई फ़साने थे
ना स्वार्थ की दरिया थी
ना ही अहंकार का समुन्द्र था
बस था
तो एक
ही था
जो हर के साथ है
पर दिखता
नहीं .
कैसे कहू
और किसको
कहूँ
की
कौन अपना और कौन पराया था.
क्यूँ वह पर तो
हर कोई
अपना था.

शुक्रवार

अपनी बात

अपनी बात : मतलब की मैं आपको अपने मन की बात कहना चाहता हूँ लेकिन कैसे कहूँ ये समझ में नहीं आ रहा है. इसके लिए क्या किया जाए .
मैंने बहुत सोच समझ कर ब्लॉग की मदद लिया . यही एक रास्ता है जो सभी तो नहीं कुछ लोगों तक अपने बात पंहुचा सकते हैं. अब देखते हैं की मेरे बात आप लोगों को पसंद आती है नहीं.
सबसे पहले मैं आप सबको कहना क्या चाहता हूँ ये बतलाना जरुरी है. क्यूँ. ठीक है न.
एक  कहाबत  आप  लोगों  ने  सुनी  होगी. " दूसरों को कुछ कहने और कुछ करने के लिए कहने से पहले खुद को जानना और खुद करना जयादा जरुरी है"
बस मेरा यही सोचना है और यही करना और करवाना है . आज हमारे समाज और देश में कितने लोग दिन भर बैठ कर अपना मूल्यवान समय बर्बाद कर देते हैं. इसके लिए सिर्फ वो नौजवान ही दोषी नहीं है बल्कि हमरा समाज का सिस्टम दोषी है. हम अपने मानसिकता नहीं बदले हैं अपने सोच नहीं बदले हैं अपने विचार नहीं बदले है . तो आप ही बताइए की हमारा समाज हमारा देश कैसे बदलेगा कैसे बढेगा . हम अपने देश का सभी नागरिक चाहे वो नौजवान हो या कोई और सभी एक जुट होकर एक दुसरे के साथ मिलकर अपने समाज और देश को आगे बढ़ने में अपना अपना कीमती समय निकल कर एक दुसरे को मदद करे. ऐसा नहीं है की सिर्फ पैसे से ही मदद की जा सकती है. आपस में प्रेम भाव और सहयोग से ही हम अपने देश की आगे प्रगति पर ले सकते हैं.
आज हमारे देश में हर कोई अपनी अपनी सोच कर बैठा है. ये मेरा है ये तुम्हारा है. अगर यही हाल हमारे समाज का रहा तो वो दिन दूर नहीं जब हम लोग एक बार फिर गुलामी के जंजीर में बंधे मिलेंगे . तब तक बहुत देर हो चुकी होगी .
अभी भी समय है.... जागो जागो कब तक सोते रहोगे.अपनी शक्ति को पहचानो...
खाश कर अपनी युवाओ को कहना चाहता हूँ. आपके ऊपर हमारे समाज और देश की जिम्मेदारी है.
हम सबके बीच से कोई नेता कोई अफसर बनता है. आज हमरे समाज में एक ईमानदार और समझदार लोगों की जरुरत है.
दोस्तों आओ हम अपने समाज और देश को एक सही दिशा में लाने की लिए कुछ करें.
अगर हम अपनी अपनी समाज और देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझ ले तो कोई हमें कुछ नहीं कर सकता है और न हम सुन सकते है.