शनिवार

समय : कितना अच्छा और कितना बुरा !

जब हम बच्चे थे तो शायद ये बातें  जो मै बता रहा हूँ शायद हर कोई कितनी बार सुने होंगे. ये ऐसा कथन है जो बिना सुने रह ही नहीं सकता है. वो कथन  है  " समय मूल्यवान है इसे व्यर्थ में नष्ट ना करो " उस समय तो हम  लोग ऐसे है सुनते थे जैसे पता  नहीं क्या पका रहे है फालतू की बात सुना सुना कर हमर भी समय ख़राब करते रहते है . ये बाते हमें कोई ना सुनाये ऐसा नहीं हो सकता है . घर पर हो तो दादा जी , दादी जी , पिता जी , माता जी और हाँ  यहाँ तक बड़े भैया ही ऐसे बाते हमें सुनाया या बताया करते थे.  ऐसे बाते का अंदाजा हमें नहीं था लेकिन १०० प्रतिशत सही है . आप चाहे जो भी सोचें लेकिन मैं इसे सही मानता हूँ. क्यूँ मैंने आज तक जो भी सोचा है पाया है वो वात आज सही जा रही है. जब हम स्कूल में थे उस समय उनकी कही बाते आज भी हमें याद आती हैं और रुलाती है क्यूँ हम लोग उस को बिना जाने टाल जाते थे . कोई बात नहीं थी उस समय हम क्या सोच रहे थे. आज जो भी सोचें लेकिन उसका रिश्ता कही ना कही आज से भी है और कल भी रहेगा .
 जब हम लोग कॉलेज में गये तब तो हमें आदत है नहीं थी सुनने कि . हम तो सिर्फ बोलते थे और सिफर बोलते थी चाहे कि सुने या ना सुने. वो २-४ साल ऐसे गुजर गये कि क्या बताऊँ . जब याद करता हूँ तो लगता है वो एक आजाद समय था ना कोई कहने वाला ना कोई सुनने वाला सिर्फ अपनी धुन थी. लेकिन ऐसा समय कब तक चलने वाला था . जैसे ही हम लोग कॉलेज पास कर निकले कि हमें इस ज़माने का पटा १ साल के अन्दर ही लग गया जब हम एक दूसरे से बिछड़ कर अपने अपने रोई रोजगार के लिए इधर उधर भटकने लगे. तब जाकर हमें मल्लों चला कि दुनिय कैसे है कौन अपना है और कौन क्या है. भैया तब भी हम लोग नहीं संभले . उस समय तक भी हम लोग अपने अपने धुन में गाना गाते चले वही पुराना राग रगते रहे . दिन प्रति दिन बीतने लगा . जब हार कर हमें कोई नौकरी नहीं मिली तब हम अपने घर को वापस चले. जैसे हम लोग अपना घर पहुचते है ऐसा लगता है जैसे हम लोग स्वर्ग पहुच गये . लेकिन कितने लोग ऐसा सोचते हैं . जब हम पढाई कर रहे थे. तब हमें ऐसा लगता नहीं था  क्यूँकि उस समय हम दूसरी दुनिया में जीते थे. क्या मम्मी क्या पापा , है ना , लेकिन जब हमें लगा कि दुनिया कुछ बदली बदली है तब हमें अपने और अपनों का अहसास हुआ . दोस्तों समय कब बुरा हो जाए कोई नहीं जनता है . परन्तु हमर माता पिता हमेशा ही चाहे समय कितना ही ना बदल जाए उनका वक्त आपके लिए नहीं बदलत है. वो हमेशा एक सा ही होता . आप हमेशा ही उनके लिए छोटे बच्चे के सामान होते है .

मंगलवार

देश का भविष्य : दशा या दुर्दशा

किसी भी देश का भविष्य हमारे बच्चों पर निर्भर करता है. लेकिन हमारे देश में बच्चों के प्रति जो नजरिया है या हम लोग देख रहे है. क्या आपको लगता है कि आगे जाकर यही बच्चे हमारे देश का कर्णधार होंगे. कभी नहीं. क्यूँ ९० पर्तिशत तो कुपोषण का शिकार हैं. कुछ बच्चे तो जो चाहते है वो मिल जाता है  लेकिन हमारे देश में देश में ऐसे भी बच्चे है जिनको दो वक्त का खाना भी नहीं मिल पटा है . शिक्षा कहा से लेंगे .
अभी हमारे समाज को बहुत कुछ बदलना पड़ेगा . अपनी सोच का दायरा बढ़ाना पड़ेगा . उंच नीच को मिटाना पड़ेगा . विचारों कि संकीर्णता को हटाना पड़ेगा तभी इन बच्चो का भविष्य कुछ हो पायेगा.
ऐसे में अगर कुछ संस्थाए नहीं हो तो क्या होगा इश्वर ही नहीं जान पाएंगे. अगर जो कुछ इस के लिए कुछ हो रहा है कुछ बिना लाभ वाली संस्थाए कर रही है . ऐसे  हम सबको एक जुट कर इनके ऐसे संस्थाए को मदद करनी चाहिए. जिससे इन बच्चे के साथ हमारे देश का भला हो सके.
अक्सर हमारे देश में इन गरीब बच्चो के लिए पैसा अआते है लेकिन इनके पास कितना और क्या पहुचते है. शायद कोई नहीं जानता है. आज हमारे देश के हर राज्य में कितने ही बिना प्रोफिट वाली संस्थाए काम कर रही है . ऐसे में हमें आगे आकार इनका स्वागत और मदद कर कुछ हौसला बाधा सकते हैं जिनसे ये आगे काम कर सके .

गुरुवार

कौन कहता है कि हिंदी हमारी मातृभाषा है ?- 3

कौन कहता  है कि हिंदी हमारी मातृभाषा है ?- ३. जो भाई मै लिखा है वो सिर्फ मेरा अपना विचार है.. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ खोखला है अगर आप सोचेंगे तो शायद आपको भी वो समस्त बातें नजर आ जाएँगी .अगर आप अपने समाज में देखेंगे तो पाएंगे कि हमारे आस पास वो सारी चीजे व्याप्त है जो हम लोग पर्तिदिन देखते है .
 आज हम सब के बच्चे स्कूल जाते है . क्या आपने सोचा हिया कि जिस स्कूल में हमर बच्चा यानि देश का भविष्य जाता है उः पर हमारी मातृभाषा का उतना ही सम्मान है जितना अंग्रेजी का . शायद आप है सोच रहे होंगे कि मै कहना छह रहा हूँ...लेकिन दोस्त मै वही कहना चाह रहा है जो आपको भी पता है . लेकिन आप उसको सोचना या जानना नहीं चाहते है  तो कोई कैसे आपको बता या समझा सकता है ...आप खुद सोच सकते हो कि क्या और कैसे हमें और हमारे देश के साथ रहना है .
 प्रत्येक इंसान का अपना एक कर्तव्य होता है ... कोई याद रखता है कोई भूल जाता है... इसमें उस इंसान कि क्या सही है और क्या गलती है . आप खुद इसका अंदाजा लगा सकते है.. इस कोई भी दूसरा इंसान आको कुछ नहीं कह सकता है ...
ये तो इंसान कि खुद कि सोच होती है ..कि वो कैसे रहना चाहता है  और क्या करना चाहता है...
 अंग्रेजी हमारी जरुरत कि भाषा है ना कि हमारी मातृभाषा . उसको हम रोजी रोजगार के प्रयोग करते रहना चाहिए ...उसको हम अपने जीवन में ढल कर मातृभाषा का दर्जा नहीं दे सकते है. हिंदी एक भाषा है जो हम सब को एक डोर से बांध कर रख सकता है . आज हमारे देश में  स्कूल का जो हाल है ...उस को सोच कर हैरान हो जायेंगे... कुछ ऐसे स्कूल  hai जहर पर हिंदी बोलने पर जुरमाना लगता है.  जरा सोचिये क्या हाल और सोच है ऐसे स्कूल के ...
हम दूसरे पर दोषारोपण करते है . लेकिन हमारे घर में ही हमारे समाज में जहा हिंदी बोलने पर जुरमाना लगाया जाता है  वह पर हिंदी दिवस और हिंदी सप्ताह बोलने मानाने का क्या औचित्य है . क्या हमारी सरकार कुछ कर सकती है? क्या हमारा संभिधान  कुछ कर सकता है. नहीं कभी नहीं
अगर कुछ करना है और कोई क्कुह कर सकता है ..तो वो है आप यानि हम सब. क्यूँ हम सबके बिना ऐसा होना संभव नहीं .सोचना भी असंभव है .