रविवार

अपनापन !


अपनापन , सुनने में कितना अच्छा लगता है , लेकिन इसके समझने और जानने में इंसान के जीवन कई वर्ष लग जाते है , तब जाकर कितने लोग इस को समझ पाते है कितने नहीं. सबसे बड़ा सवाल यह है अपनापन का अर्थ समझना. हर कोई अपने सोच विचार कर अपनापन का परिभाषा देता है .

कोई इंसान अपने जीवन में न जाने कितने लोगों से मिलता है , न जाने कितने परिभाषा का निर्माण करता है , हर बार एक नयी सोच को जनम देता है. क्यूँ हम हर बार कही न कही , अपने पिछले विचार से अलग हो जाते है. हर बार का मिलन एक नयी अनुभब को लाता है. ऐसे में लगता है की हम तो बिलकुल ही अनजाने है. हमें तो पता ही नहीं चल पाता है की आखिर हर बार एक नहीं सोच कहा से उभर कर हमारे जीवन के सामने आ जाता है.

जैसे जैसे इंसान अपने परिवार में बड़ा होता जाता है, मतलब की अपने जिंदगी के दिनों को जीता है, और उसको अपने जीवन के जीने का जो अनुभव उसे प्राप्त होता है, आगे जाकर उसे सोचता है. बचपन में हर कोई उसे अपना लगता है , क्यूँ की उसे इस संसार के बारे में कुछ भी पता नहीं है. जैसे जैसे वो बड़ा होता है , एक इंसान को वो समझने लगता है . जो उसके हर बात को मानता है , उसे लगता है की वही सबसे प्यारा और अपना है, दुनिया की सारी खुशिया सिर्फ वही दे सकता है, वही सबसे जयादा प्यार करता है , इस दुनिया में उसके जैसा कोई नहीं है.

उम्र के साथ साथ उसका ज्ञान भी विकास के दौर में होता है. तब तक उसे ये पता नहीं होगा है की कौन उसे से क्या चाहता है . उसके इच्छा के अनुरूप कौन करता है . उनका ख्याल कौन करता है. माता -पिता का क्या फर्ज है. और वो कितना प्यार करते है . क्यूँ सारे गुण - अवगुण हमें उन्ही से मिलते हैं . हमारे घर का क्या संस्कार है. ये हम अपने बच्चे में देख सकते है. अगर हम समय के रहते अगर , अपने बच्चे को नहीं बताया या नहीं संभाला , तो शाद आप कभी भी नहीं संभाल पाएंगे. क्यूँ आगे जाकर तो हम उससे कुछ कह भी नहीं सकते , क्यूँ तब तक उसका यानि बच्चे का कान बंद हो चूका होता है. ऐसे में हम कोई अपेक्षा नहीं कर सकते है. क्यूँ की तब तक वो आप से वो बहुत दूर जा चूका होता है किसी और के पास, जहा से बुलाना आपके बश का नहीं है.

हम हमेशा से अपने बच्चे के साथ प्यार की भाषा देते है लेकिन उस प्यार के भाषा में अनुशाषण भी लाना जरुरी है , अगर ये कम हो गया तो कुछ क्या किसी भी परकार का सोचना बेबकूफी होगा.

हमारे जीवन में अनुशाषण का बहुत बड़ा योगदान है, वो हमें सबसे पहले अपने घर - परिवार से मिलता है , उसके बाद स्कूल से . अगर आप अपने बच्चे के घर से नहीं मिलेगा तो , स्कूल से जायदा की उम्मीद रखना बेकार है. क्यूँ की हमने उसकी जड़े में कमजोर कर दी है, तो ताने क्या ख़ाक मजबूत होंगे. उसमे खूब आप खाद बीज दो , क्या होगा ?

आज कल हमारे देश में भ्रष्टाचार का आग फैला हुआ है, वो एक ऐसा बीमारी है या ये कह सकते है की एक ऐसा वायरस है, जो हर जगह हर किसी को अपने शिकार में फंस रखा है, हर किसी के खून में मिल चूका है, हम कितना भी इलाज कर रहे है, वो ठीक नहीं हो पा रहा है. ऐसे में अगर हम अपने संतान को संस्कार और अनुशाषण से आगे बढाये होते तो शायद ये दिन न देखे पड़ते . क्यूँ आज जो भ्रष्टाचारी है , वो किसी ग्रह से नहीं , बल्कि हमारे ये परिवार और समाज से आया है. ऐसे हमें सबसे पहले अपने संस्कार पर ध्यान देना होगा . जब तक हम ऐसा नहीं करेंगे भ्रष्टाचार कभी भी समाप्त नहीं होगा.

चरित्र निर्माण एक ऐसे कुंजी है , ज्सिसे से हम समाज के सारे ताले खोल सकते हैं, सारे दुःख का का अंत हो सकता है. सारे पापों का अंत हो सकता है. सारे झगडे का समर्पण हो सकता है. लेकिन ये हो कैसे ? जब तक हम अपने परिवार में ये संस्कार रूपी जड़ी बूटी नहीं लायेंगे और इसके नहीं पियेंगे तब इस बीमारी से इसका इलाज नहीं होगा .

अपना और पराया का परिभाषा हर कोई इंसान समझता है. लेकिन इकतरफा , हर कोई सिर्फ अपना किनारा देखता है, अपना स्वार्थ देखता है, उसे दूसरा इंसान तबी तक अपना लगता है , जब तक उसे से वो किसी न किस प्रकार से उसे फायदा मिल रहा है. लेकिन ये अपनापन नहीं है, ये तो धोखा है, उसके जज्बातों के साथ ,उसके विश्वाश के साथ.

आज का समाज की क्या स्तिथि हो गयी है, हर कोई इससे अवगत है, लेकिन आगे बढ़ कर कौन इसको रोके, कौन कुछ करे , आज तो ये स्तिथि हो गयी है , अगर कोई इसको आगे बढ़ कर करना भी चाहता है, इस समाज के हर कोने से , ये सवाल आता है , "आखिर ये ऐसा काम क्यूँ कर रहा है, जरुर कुछ उसका फायदा होगा या हो रहा है," और उसके बाद कुछ लोग उसको भी समाज की गन्दी जंजालो से इसको परेशान का, उस काम से अलग कर देंगे.

ऐसे लोगों को तो न अपने परिवार से , नहीं इस समाज और देश से कोई अपनापन है, वो सिर्फ अपने लिए जीते हैं , आगे जाकर हमारे समाज और देश का भविष्य निर्माण की योजना बनाते है. ऐसे में देश का क्या होगा , शायद ईश्वर को भी पता नहीं होगा.