शुक्रवार

मै और मेरा घर !



बहुत दिनों से , मै सोच रहा था और जानने के कोशिश कर रहा था , हमारे देश में बहुत कुछ समस्याएं और अन्धविश्वाश जैसा वातावरण दिख रहा था . ऐसे ऐसे भी विचार हमारे मन में आ रहा था कि मै सोच सोच कर फव्याकुल हो रहा था . ऐसे ख्याल मेरे मन में क्यूँ आ रहा है. आखिर मै इतना परेशां क्यूँ हो रहा हूँ. धीरे धीरे मै भी इन सब चीजों को भूलने कि आदत डालने लगा, आखिर कब तक ऐसे ही जिया जायेगा. आखिर हम भी एक इंसान है विचार का आना और जाना लगा रहता है, ऐसे में किसी एक को बिठा कर रखने से जिदगी आगे नहीं बढ़ सकती है.
इसी को लेकन मैं एक अपने दोस्त से बात करना चाहा , उसे बताना चाहा कि आज कल मेरे मन बहुत ही अजीबो गरीब ख्याल आ रहे हैं. उसने मुझे समझाया, देखो हम सब एक इंसान है और इस समाज में रहते हैं. ऐसे में हमारा भी कुछ फर्ज बनता है .
समाज और देश के प्रति सिर्फ हमारा ही नहीं , बल्कि देश और समाज में हरएक इंसान का यही फर्ज होना चाहिए. लेकिन मैंने सोचा कि क्या सिर्फ सोचने और बोलने मात्र से हमारा देश और समाज का भला हो जायेगा ?  क्या एक दूसरे पर अपने बात नहीं मानने और काम नहीं करने का बहाना बता कर , अपना हाथ और अपने को इससे से पीछे हो जाना , इससे से  समाज और देश का भला हो जायेगा ? हमेशा दूसरे को आगे बढ़ने पर उसकी पैर खीच कर निचे गिराने के आदत से हमारे समाज और देश आगे बढ़ जायेगा. ? हम सभी अपने कर्तव्य और फर्ज को भूलते जा रहे हैं. आज हमारे समाज में न तो कोई किसी का बात सुनने और समझने के लिए तैयार है न ही समझाने के लिए , ऐसे हम क्या आशा करते है कि आसमान से आकार कर जायेगा. ऐसा बिलकुल नहीं होगा . कुछ पाने के कुछ खोना पड़ता है – ऐसा सभी लोग जानते हैं लेकिन अमल कोई करना नहीं चाहता है .
जहाँ पर देश और देश कि बात आती है, वहाँ पर हमारे कान खड़े हो जाते हैं, दिल में एक जोश सा जग जाता है. लेकिन वही कुछ देश कि लिए करने कि बात आती है , वही हमारा सोया हुआ स्वार्थ ऊपर हो जाता है. हमें अपने देशभक्ति को निजी स्वार्थ के आग में उसे जला कर राख तो बनाते ही है साथ में न जाने कितने के मन अपने और अपने जैसे लोगों के पार्टी घृणा का रोग देकर अपने देश और देशवाशियों को उसमे जलने के लिए छोड़ देते हैं.
आज हमारे देश में बहुत सारे देश भक्त और कुछ नेता लोग (जो देशभक्ति की बात करते हैं ) अपना विचार रख कर देश में कुछ नया करने कि कोशिश कर रहे हैं. सबसे पहले जब भी हम अपने हिंदुस्तान कि बात करते  हैं , सबसे पहले हमें हिंदुस्तान के सभी नागरिक को सचाई का पथ पढाना पड़ेगा , उसे जगाना पड़ेगा. ९० प्रतिशत तो लोग एक जून का खाने के लिए तरश रहे हैं. न तो उसके पास रोजगार है न कोई धंधा . ऐसे में सबसे पहले , हमें अपने उन आवश्यक चीजों को उसके पहुच तक लाने का प्रयास करना चाहिए. ताकि मूलभूत चीजे उनके पास आसानी से आ सकें. यानि मंहगाई को कर करना पड़ेगा. उसके बात हमें उसके शिक्षा पर ध्यान देना होगा उसके बात ही हम उसके स्वस्थ्य के बारे में सोच सकते हैं. ऐसे में अगर हम इन चीजों को छोड़ कर किसी और पर अगर बात करतें है तो वो  बिल्कूल बेईमानी होगी.

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