रविवार

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शनिवार

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रविवार

YE JO DESH HAI TERA

शनिवार

रक्षा बंधन या उपहार बंधन


रक्षा बंधन का अर्थ होता है जो रक्षा के लिए जो बंधन बना हो , जैसे सूत और रेशम के धागे से बंधन।  ये बंधन कोई आम बंधन नहीं है।  ये एक रक्षा कवच है , बंधने वाले के श्रद्धा भाव और पवित्र शक्ति से एक कवच तैयार करना। जिससे आपको हर प्रकार के कुदृष्टि , कुविचार , व्याधियों , हर संकट से आपकी रक्षा करे।  उसके बदले आप भी बांधने वाले की भी रक्षा करें।  ये एक वचन देना होता है।

लेकिन आज समाज में कुछ और ही प्राचलन चला है , राखी तो एक व्यापार बढ़ाने के जरिया बन गया है, ये रक्षा बंधन से ज्यादा उपहार बंधन या गिफ्ट बंधन बन गया है।  बहन और भाई , बड़े या छोटे, सभी के रिश्ते में सिर्फ रक्षा बंधन से जयादा उपहार बंधन हो कर रह गया है.

उपहार देना और लेना अच्छी चीज है ,  जिससे आपस में रिश्ते बने रहते है , लेकिन इसका ये मतलब नहीं है की , एक पवित्र त्यौहार जो आप गिफ्ट और त्यौहार पर्व बना दे।

आज हमें अपनी संस्कृति और सभ्यता को भूलना नहीं चाहिए।  आज हम लोग सभी अपने परिवार और समाज में ये बताये की हम रक्षा बंधन का पवित्र त्यौहार क्यों मानते हैं।  उन्हें ये अहसास होना चाहिए की ये सूत , धागा कोई आम धागा नहीं है , बल्कि ये रक्षा कवच है , जो सभी संकट से आपकी रक्षा करता है , उसके बदले गिफ्ट या उपहार नहीं , बल्कि आप वचन दें, की हम भी आपकी हर संकट से रक्षा करें।  

बुधवार

गर्व से कहो ।

गर्व से कहो
हम भारतीय हैं।

जहाँ कानून का
हर गली में टूटता दम हो।
गर्व से कहो
हम भारतीय हैं।

जहाँ बिखड़ता बचपन हो
टूटती जवानी का धैर्य हो
बुढ़ापे का न सहारा हो

फिर भी हम कहें
गर्व से कहो
हम भारतीय हैं।

हर गली में सिसकता बचपन हो
रिश्ते के बीच न कोई रिश्ता हो

फिर भी हम कहें
गर्व से कहो
हम भारतीय हैं।

खून के रिश्ते में पानी की भी
एक बून्द न हो
ऐसे खून का रिश्ता हो।

जहाँ धर्म के नाम पर एक भी विचार न हो
संस्कृति और सभ्यता को बेचकर
हर कोई मुस्कुराने वाला हो

फिर भी हम कहें
गर्व से कहो
हम भारतीय हैं।

जन्मभूमि को भूखे भेड़िये की तरह
खानें वाला हो।
हवसी की तरह
घूरने वाला हो।

चंद पैसे के खातिर
माँ बहन को बाजार में बेचने वाला हो

फिर भी हम कहें
गर्व से कहो
हम भारतीय हैं।

झूठ और मक्कारी भी
आँख से आँख में डाल कर बात करने वाला हो
शर्म हया न कोई बात हो
ऐसे देश और समाज में उसका ही बोलबाला हो।

फिर भी हम कहें
गर्व से कहो
हम भारतीय हैं।

मेरा खून नहीं
गन्दी नाले का पानी है
जो ये सब देख कर
दिल रोता नहीं
हँसता है।

फिर भी हम कहें
गर्व से कहो
हम भारतीय हैं।

बीच बाजार में जहाँ बिकता
आबरू और इज्जत है।
खुले आम घूमता उचक्का है
पिसता आम आदमी है।

फिर भी हम कहें
गर्व से कहो
हम भारतीय हैं।

तस्वीर: गलती किसकी -1

हम जिस समाज और देश में रहते हैं, प्राचीन काल से हमें ये सन्देश और सुभाषित सुनने को मिलता है। जन्म भूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। जन्मभूमि को देवभूमि भी कहा जाता है।
जननी जन्मभूमि च स्वर्गादपि गरीयसी।
लेकिन लगता है की हम ऐसा समझते हैं, सोचते हैं। नहीं। बिलकुल नहीं। हम सिर्फ विचार करते हैं। वो भी कहाँ , वहां जहाँ पर कोई भी इस बात को समझने वाला नहीं होता है।
आज हमें अपने समाज और देश की दशा और दिशा दोनों को बदलने और उसमे सुधार लाने की आवश्यकता हो रही है ।
हम अगर अपने समाज और देश की प्राचीन परम्परा और संस्कार को देखें और समझे तब ये सब हमारे समझ और व्यक्तित्व में आएगा।
आज हमें अपने संस्कारों में एक बार झांकना होगा की अपने समाज और देश के भविष्यों के साथ कितना बढ़ा धोखा और खिलवाड़ कर रहे हैं।
अपने समाज और देश के भविष्य हमारे बच्चे हैं । क्या हमें लगता है की हम सब उचित दिशा में बच्चों के ले जा रहे हैं। नहीं। सिर्फ व्यवसायिक दृष्टि से हम सोच रहे हैं।
पैसा जरुरी है लेकिन संस्कार बेचकर नहीं। संस्कार के कीमत पर हमें धन नहीं चाहिए।
आज का इंसान सिर्फ पैसा और पैसा के पीछे है, लेकिन क्या आपको लगता है की पैसा ही सबकुछ है। पैसा आपकी जरुरत पूरी कर सकता है लेकिन आत्मसंतुष्टि नहीं। शांति नहीं मिल सकती है।
आज हमें सोचना है अपने समाज और देश के लिए। अपने भविष्य के लिए। भूतकाल के गलतियों से  सीखकर अपने वर्तमान को सुधार कर अपने भविष्य का निर्माण कर सकते हैं
जय हिन्द । जय भारत। वंदे मातरम्।

मंगलवार

देश का दीपक !

आज देश का एक और दीपक  बुझ गया !  जो अपने जीवन काल में सिर्फ और सिर्फ अपने देश के लिए जीया हो, सिर्फ अपने इस जगत जननी मातृभूमि के जीया  हो. ऐसे इंसान क्या फिर आएंगे  ?  कितने शदी के बाद ऐसी आत्मा का पुनर्जन्म इस पावन मिटटी पर पावन और देशभक्त आत्मा का जनम होता है. ऐसे ही पावन और पवित्र आत्मा श्री कलाम साहेब को श्रद्धांजलि। …

आज जब हमारे देश में ऐसे हो महापुरुषों की जरुरत है , उनके अनुभव की हमारे देश की जरुरत है, वो हमें इस देश को , इस धरती को छोड़ चले गए।

हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं, की फिर से हमारे देश में कलाम साहेब को जन्म दे ताकि इस देश का कल्याण और उद्धार हो.

जिनके ह्रदय में सिर्फ देश और देश हो… न को भेदभाव न को घमंड , न अभिमान। …ऐसे महापुरुष कितने सदियों के बाद ,,,जनम लेते है , और देश वाशियों को दर्शन का सुभाग्य मिलता है.

भगवान इनकी आत्मा को शांति दे , फिर से इनको आत्मा को भारतवर्ष में जन्म दे है , यही कामना है।

शनिवार

अस्मिता का सवाल !

कितनी विडंबना है , की हमारे देश में ही , हमारे देश का, मान का , सम्मान का , जीने की उद्देश्य का ,  मर -मिटने का जज्बा और जोश भरने वाला ,  एक और एक करने वाला, उस तिरंगे का इज्जत और सम्मान न मिले!

इस तिरंगे के जो अपने आप को कुर्बान कर दिए . क्या वो व्यर्थ हो गया ? वो कुर्बानी बेकार चली गयी ?  क्या वो गीत जिससे हर हिन्दुतानी जो अपने देश और अपने इस मिटटी से प्यार करता है , वो बेकार है . व्यर्थ है .
हम अपने आगे आने वाली पीढ़ी को क्या बताएँगे . अपने जान - शान - मान से भी ऊँचा हमारा तिरंगा कोई अपमान करे और हम सहन करे और करते रहेंगे .

आखिर कब तक ?

कोई  भी यहाँ पर आकर किसी आतंकी का झंडा लहरा जाता है ,  हम और हमारा समाज , हमारा प्रशाशन सब देखता रहा है,  वाह रे ...... आखिर ऐसा क्यूँ होता है ?  कौन है जो इस तरह का ख्याल अपने जेहन में लाता है,  अगर लाता भी है तो , इसे अपने देश में , अपने ही समाज में , उसका लहराने का प्रयास ही नहीं, बल्कि लहराता है ,  क्यूँ ?  क्या इस देश की संप्रुभता पर विस्वास नहीं है, संबिधान पर विस्वास नहीं है , देश की अखंडता पर विश्वास नहीं  है , या फिर ,,,वो इस देश को तोड़ने में विश्वास रखता है, कौन है ,,,वो .....गद्दार ,,,,कौन है वो ,,,,,बदनसीब जो इस हिन्दुस्तान को टुकड़े करना चाहता है..........कौन है वो .....कौन है वो ......आखिर क्या चाहता है....वो १९४७  वाला बटवारा ......नहीं ...वो समय कुछ और था .....अब समय कुछ और है........

अब न वो गाँधी है ,,,न वो कोई और ....अगर एक गाँधी है ,,या यहाँ तो ,,,,,सुभाष , आजाद और भगत की कमी नहीं है,,,,,,,,,,

अब समय आ गया ....जागने का ......

बहुत हो गया अपमान तिरंगे का ....
बहुत हो गया सम्मान  का दुश्मनों का .
बहुत हो गया कल्याण भगोड़ो का ,
बहुत जल गया तिरंगा
बहुत जल गया समाज.


आओ अब मिलकर कुछ करे इससे पहले की देर हो जाए ...







बुधवार

गरीबी तो गरीबी है।

गरीबी तो आखिर गरीबी है
ये गरीबों की मज़बूरी है।

न तो ये हँस सकता है
न तो ये रो सकता है
ये गरीबों की मज़बूरी है।
तन से तो ये नंगा है
मन से गंगा है
साहस का हिमालय है
ममता का ये परिचायक है।
ये गरीबों की मज़बूरी है।

न दिन का ख्याल है
न रात का
कब निबाला मिलेगा
न कोई इसका इन्तजार है
ये गरीबों की मजबूरी है।

पढाई क्या
लिखाई क्या
बीमारी क्या
सबका न ख्याल है।
दो दाना मिल जाए
गले में उतर जाए।
ये गरीबों की मज़बूरी है।

गुरुवार

तुम बोलो तो सही, हम बोले तो गलत !

समाज में आचार और विचार का प्रभाव कितना गिर गया है की आप सोच नहीं सकते हैं. हर कोई अपने आप को सबसे अचछा और समझदार मानता है. मुझसे अच्चा इंसान तो इस धरातल पर कोई है ही नहीं. जो मई बोल या कह रहा हूँ वही सब ठीक है. सोलह आने सच है , बाकि जो बोलते हैं या कहते हैं ...वो बेबकूफी है.
इसी तरह का शब्दों का आदान प्रदान हमारे समाज के सबसे सभ्य और समझदार विद्वान समाज से सुनने को मिल रहा है . मैं जब से होश संभाला है. यानि जब से मुझे याद है और मेरी याद्दाश के के मेमोरी में है. लगभग नेताओं और उनके सगे सम्भ्धियों के बोल बिगड़े हैं. हर एक पार्टी में कुछ नेता ही हैं जो अपने शोब्दों को टोल -मोल कर बोलते हैं , बाकि तो चमरे के मुह है , जो निकलता है वो ब्रह्वाक्य है.
मुझे याद है बिहार जाति वाद के आग में झोकने वाले दो नेता , आज कल संत की भाषा समझाने में लगे हैं, हर दुसरे पार्टी के नेता को नसीहत दे रहे हैं. ये गलत है और ये सही. कमाल है . नौ सो चूहे खाकर , बिल्ली चली हज को. ये कुछ हजम नहीं होता है . क्या करें.
पिछले कुछ दिनों से तो ये नेता लोग , एक अनपढ़ और गवार से भी गये गुजरे भाषा का इस्तेमाल करते आ रहे हैं. अगर किसी ने मुझे गाली दी , मेरी बाप को गली दी, मा को गाली दी, मई चुप चुप सहन कर गया . तब कोई हल्ला गुल्ला नहीं मचा, एक दो दिन में सब शांत हो गये . क्यूँ मैं साम्प्रदायिक था , आरएसएस का एजेंट था . जब हमारे कुछ भाई ने कुछ जुमले देकर उदाहरण दिया तो ...***ड में मिर्ची लग गयी है. सिर्फ नेताओं को नहीं , बल्कि सबसे भ्रष्ट विभाग मीडिया यानि प्रत्कारिता करने वाले को भी जलन होने लगी.
भाई मिर्ची ऐसे जगह कैसे लग गयी , मैंने तो ऐसा कुछ किया नहीं .....
कैसे नहीं किया ...आपने गलत जगाह लगाया......
लेकिन आपने जो पहले डंडा दिया था.......तब तो किसी की आवाज नहीं आई थी.....तब तो बड़े हंस रहे थे......अब दर्द हो रहा है तो ...**ट रही हिया....आये .....
कोई कालिख पोतने की बात करता है, अरे भाई. हम थोड़े ही न किसी जानवर का हक़ छीने हैं.....पृष्ठभूमि .......देखना है ....हा हा हा हा .....पहले अपना इतिहास देखो...साहेब.....खुद का पृष्ठभूमि दिखाई देगा....कहा थे ...कहाँ पहुच गये...
नेताओं के कोई धर्म नहीं होता है . न कोई ईमान. जब चाहे वो बेच दे....सिर्फ सिर्फ सिर्फ चाँद पैसों के लिए....
गलती तो हमारी है.....जो इन जैसों को वोट देकर समाज को बाटने का ठेका दे देते हैं......और फिर सर पकड़ का बैठ जाते हैं.
न तो ये सुधरेंगे ...न ये कुछ करेंगे. !!!!!!!!!!!

प्रकार के लोग ....


हमारे समाज में प्रकार - प्रकार के लोग है. हर कोई अपने को सबसे अच्छा और अपने को सबसे बड़ा ईमानदार कहता है. यहाँ कोई किसी से छोटा नहीं है. हर कोई महान आत्मा है . भगवान् और ईश्वर भी इन इंसान के आगे छोटे हैं. जो ये इंसान सोच सकते हैं. कर सकते हैं अपने आप को बदल सकते है  वऐसा तो भगवान् भी नहीं कर सकते हैं.
आज आप जहाँ पर नजर डालेंगे वहाँ देखेंगे हर कोई एक दुसरे को चोर और अपने को सिपाही कह रहा है. जब हमें कोई जिम्मेदारी मिलती है. तब हमें अपने आप को दिखने का मौका मिलता है. तब ही हमारी औकात मालूम चलती है की हम कितने पानी में हाँ.
सिर्फ बोलने से काम हो जाता तो शायद में आज मैं भगवान् से भी ऊपर जाकर बैठ जाता ...ऐसा हर इंसान सोचता हैं. लेकिन उसके करने के लिए बहुत कुछ खोना नहीं बलिक करना पड़ता है. बिना किये कुछ हासिल नहीं होता है. बने बनाये घर में तो हर कोई आराम से रह लेता है लेकिन जब खुद उसकी मरमम्त की जरूत पड़ती है तब मालूम चलता है की कितना मेहनत है घर को बनाने में .
एक इंसान एक परिवार को ठीक ढंग से चला नहीं पता है उसके चलाने के लिए क्या क्या नहीं करने पड़ते हाँ क्या क्या ख्याल आते हैन . कभी आप सोचियेगा हम अपने परिवार को कैसे चलाएंगे . पिता जी माता जी , बहन और भाई , इन सब के अलावा पत्नी और बच्चे , इन सब को संभालना और खुश रखना कितना बड़ा काम है , आप उनसे ही पूछिये जो चला रहा हैं. जब तक पिता जी चला रहेंगे तब तक तो आप हमेशा उनके खिलाफ होंगे . ये नहीं होता है वो नहीं होता हिया . बेकार हैं , इनसे कुछ नहीं होगा , मेरे ऊपर छोड़ दीजिये .मैं कर के दिखा दूंगा . बात सुनते - सुनते एक दिन आपके पिता जी ने कह दिया बेटा अब तू संभाल ले. फिर देखिये .....कितना मजा आयेगा.
जब तक आप अपने पिता जी के साथ - साथ इन सब में अपनइ भागीदारी नही देंगे ...इसे चला पाना बहुत कठिन है ...बहुत म्हणत करनी पड़ेगी. लेकिन कैसे ....आपके पास पेशेंस होना चाहिए. नहीं तो आप इसको बीच रस्ते में छोड़ देंगे. क्यूँ की आप ये आप से नहीं हो पायेगा. जा ताने आपने अपने पिता जी को दिए थे वो आपको भी मिलेगे. और छोड़ेने से कुछ नहीं होने वाला. कब तक भंगेगे ......सोचिये.
आरोप लगाना बहुत आसान हैं, कभी अपने ऊपर लगे तो सोचियेगा .......जब अपने घर में कोई काम के लिए रखन होता है तो देखे हेई की जो लड़का है काम करने वाला है या बहाने वाला.....