गुरुवार

सजा : बलात्कार को या बलात्कारियों को !


आज हमारे देश के हर एक कोने से एक ही आवाज आ रही है. हमारा कानून ऐसा होना जिससे कोई भी गुनाह करने वाला बचना नहीं चाहिए. चाहे वो कोई आम् इंसान हो या फिर कोई कद्दावर इंसान . लेकिन आपको अपने देश में ऐसा या इस प्रकार का कोई भी कानून मिल पायेगा. नहीं .... क्यूँ कानून को बनाने वाला ही सबसे पहले कानून की धजियां तोड़ता है . ऐसे इस प्रकार की कोई भी आशा निरर्थक है.
आज दो तीन दिनों से , एक लड़की का बलात्कार की घटना से सभी लोग आहात है, पूरा देश कुछ न कुछ सन्देश दे रहा है. चाहे वो आम जनता हो, या कोई अधिकारी और फिर कहे तो वो नेता जो हमारे देश के लिए महान कार्य करते हैं.
उपदेश देना और उस पर कितना अमल होता है. दोनों अलग अलग हैं. हर दिन कोई न कोई उपदेश देता रहता है. लेकिन कोई भी इंसान उस पर कितना अमल करता है. ये उसके सोच पर निर्भर करता है. उसकी सोच पर ही उसका परिवार और समाज का मापदंड शुरू होता है. जैसा सोच होता है वैसा ही इंसान बनता जाता है.
आज हर तरफ से एक शोर सुने दे रहा है. बलात्कारियों को फांसी दो. आम जनता से लेकर नौकर शाही और नेता (महिला नेता) सभी ने एक सुर में कहा है हमारे कानून को थोडा और सख्त बनाने की जरुरत है , लेकिन अभी इसको क्या सजा मिलना चाहिए , किसी ने कुछ नहीं कहा . आखिर सभी कानून बनाने वाले और उसके रक्षक चुप क्यूँ हैं ? आखिर ये चुप्पी कब तक रहेगी ? अगर यही चुप्पी जारी रही तो , ऐसे कांड हमेशा से होते रहे है,,आगे भी होते रहेंगे.
अब समय आ गया है, कुछ करने के लिए. अभी आग लगी हुई है. आम जनता चाहती है. कुछ ऐसा सजा मिले जिससे समाज में ये सन्देश जाए की. अगर आप में से कोई भी इस तरह का घिनौना काम को अंजाम देता है, तो उसके साथ भी  ऐसी ही सजा मिलेगी . लेकिन क्या ऐसा हो पायेगा ? क्या इसको ऐसे सजा मिलेगी जिससे समाज में एक सन्देश जाए ?
आज सोचने के विषय ये है की , जो ऐसे मानसिकता वाले इंसान कहा से आते है, किस समाज से आते है.  उनके आस पास का वातावरण कैसा है. किस प्रकार उनका रहन सहन है.  क्यूँ की जो इस मिली वो इन सबके समाज से मिलता है. अगर एक सभ्य और संसकारी समाज में शायद ही इस तरह का मानसिकता वाला इंसान मिलेगा.
आज हमें एक संस्कारी और सभ्य समाज का निर्माण करना पड़ेगा अगर ऐसा नहीं करेंगे तो आने वाला समय में हमारी माँ , बहन , बेटिओं को घर से बाहर निकलना तो दूर झाकना भी दुर्लभ हो जाएगा.
ऐसे में हम सब को एक जुट हो कर इस ऐसे सजा की मांग करनी चाहिए जिससे इस समाज में एक सन्देश जाए ताकि इस तरह की शर्मनाक घटना दुबारा न हो जिसे हमारे समाज को सोचने पर विवश हो जाए.
अगर सजा के बारे मुझसे अपनी राइ पूछी जाए तो हम तो यही कहेंगे की बलात्कारियों के एक आँख , एक कान , दोनों हाथ और दोनों पैर काट कर शारीर से अलग कर दिया जाए. उसके बाद उससे किसी चौराहे पर छोड़ दिया जाए ताकि उसे और उसके जैसे सोचने वाले एक नहीं एक करोड़ बार सोचें .फांसी की सजा से उसके कुछ अहसाह ही नहीं होगा , क्या दर्द किस चीज का नाम है, उसे उस दर्द का अहसास करवाना जरुरी है. जब दर्द महसूस होगा , वो दिन याद आएंगे की मैंने जो पाप किया है, उसकी सजा शायद यही है.
जरा सोचो, जिसके ये दर्द मिला है, वो अभी किस हालात हे होगी, उस दर्द सिर्फ वही समझ सकता है, सिर्फ वही जिसे ये मिला है. मै तो ईश्वर से ये पार्थना करता हूँ की उसे सहने की ये शक्ति दे !
लेकिन आज हमारे देश की राजनितिक विचारधारा और उनमे आये हुए नेताओं से इस तरह की अपेक्षा करना पूरी तरह से बेईमानी होगी. क्यूँ  हमारे देश की संसद में बहुत कम ऐसे नेता होंगे जो इस तरह की सजा का देने का पक्ष में  होंगे क्यूँ  अगर वो ऐसा करते हैं , तो उनमे से भी कितनों पर इस तरह के गंभीर मुकदमा चल रहे होंगे. ऐसे में इसे लाना अपने पैर कुल्हाड़ी मरने के बराबर होगा. और कोई भी इंसान अपना नुक्सान कभी नहीं चाहता है.
इंतज़ार अब खतम कनरे की जरुरत हैं , दोषियों की सजा देने और दिलवाने का वक्त आ गया ...आगे बढे एक अच्छे परिवार और समाज का निर्माण करें ताकि इस तरह के इंसान से मुक्ति मिल सके .क्यूँ  अच्छे संस्कार ही एक अच्छा समाज का निर्माण कर सकता है. क्यूँ की गलती किसकी है...ये सोचना हम सबका काम है.

समाज और अखबार


हमारे देश में सभी को कुछ बोलने या कहने की पूरी आजादी है , खासकर समाचार पत्रों को , कह सकते हैं की कोई नियम या कानून भी नहीं है , जो इसको देख सके , की ये क्या आप जनता के पास पंहुचा रहे हैं. अगर हम ये कहे की , जिनके पास इनका शिकयत दे सकते हैं , वो भी इनके जैसे  हैं या इनके ही आस पास के लोग हैं. आखिर में हम शिकायत करे तो किस से करे.
एक कहावत है , " साहित्य समाज का दर्पण है " और ये अक्षरश सत्य है . क्यूँ कि इसका पूरा असर हमारे समाज को बनाने या बिगड़ने में योगदान होता है.
आज का समाचार पत्र या टी . वी . न्यूज़ चैनल , क्या दिखाते  हैं, या क्या दिखाना चाहते हैं. किसी के पास कुछ भी सोचने या समझने की  जरुरत नहीं  हैं .,आखिर वो कहा जा रहे है. या कहा जाना चाहते हैं. समाज पर उनका क्या असर होता है. शायद वो अपने स्वार्थ में पूरी तरह से भूल गए हैं. अपना रास्ता भटक गए है. इसका क्या परिणाम होगा शायद ये भी भूल गए है.
आज समाज को एक मार्गदर्शक की जरुरत है जो इसको एक दिशा दे सके . लेकिन आज कल को जो समय है , वो उलटी गंगा बह रही है.
आज 6 दिसंबर 2012  है , आप जिसे अखबार पर नजर डालेंगे , वही पर आपको सारी दुनिया की खबर को छोड़ कर , सिर्फ अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराए जाने की निंदा करते मिलेंगे. हर कोई अखबार बाला मुसलमानों  को अपना जताने और बताने की कोसिस करता नजर आता है. जिस अखबार के कुछ खास लेखक अयोध्या कांड का अपना अपना परवचन सुना रहा है. चाहे वो हिंदू धर्म का या किस गैर धर्म का . सब एक सुर में हिंदुओं को दोष दे रहे है और मान रहे है. सबको लगता है की जो भी कांड हुआ है . जो हो रहा  है, वो हिंदू लोग  मुसलमान को परेशान कर रहे है.
आज २० साल हो गए बाबरी मस्जिद कांड को. लेकिन हर कोई अखबार वाला, एक गुन और भजन गा रहा है. जो हुआ गलत हुआ था , ऐसा नहीं होना चाहिए था. इन सबकी सजा मुसलमान ही क्यूँ भुगते . यहाँ तो मुसलमानों का को कोई इजज्जत नहीं है. हर कोई अपना विचार प्रगट कर रहा है.
लेकिन क्या कोई इसके दर्द को दोनों के तरफ से सोच रहा  है ? क्या गम और दुःख एक तरफ  है ? एक दंगे होते है तो सिर्फ एक समुदाय के लोग मरते या घायल होते हैं ? जो कुछ घटना होता है , तो क्या एक ही समुदाय का नुक्सान होता है. ?
लेकिन ये तो हिंदुस्तान है, हर कोई एक हिंदू  समुदाय को  दोष देता है , आखिर क्यूँ ?  हिंदू के परिवार में सुख दुःख का अहसास नहीं  होता है ? क्या हिंदू लोग दंगे में नहीं मरते या घायल होते है ? तो फिर सिर्फ हिंदू ही दोषी क्यूँ ?
जहा तक मेरा विचार है ,  जो लोग या संस्था इस तरह का विचार देते हैं, या प्रकशित करते है, ये अपनी छोटी और गिरी हुई मानसिकता का परिचय देते हैं. वो कभी भी किसी का अच्छा सोच ही नहीं सकते हैं. कभी किसी का भला नहीं सोच सकते हैं. वो सिर्फ अपनी स्वार्थ पूर्ति हेतु अपना जमीर को बेच देते है. ऐसे में वो अपना देश और समाज के बारे में क्या सोच सकता है. और हमें ऐसे लोगों से कोई अच्छी अपेक्षा भी नहीं रखनी चाहिए.
हिंदुस्तान की जनता तो सही मायने में ज न ता है ये कुछ भी नहीं जानती है. जानते तो वो लोग हैं जो इन भोले भले पढ़े लिखे महामूर्खो  को भी पढ़ा लिखा कर संसद और विधान सभा तक पहुच कर हम सब पर शासन करते हैं. और जब तक हम एक तरफ़ा सोचते रहेंगे ये हम पर राज करते रहेंगे !
सिक्के के दोनों पहलु को देखने वाला यहाँ पर कोई है नहीं. जो देख सकते हैं, वो देखते नहीं है.  जिनको देखना चाहिए. वो तो अंधे और बहरे भी है. ऐसे में क्या आशा करना चाहिए.

जागने का समय है ,
जागना भी चाहता हूँ .
पर जग नहीं पाता  हूँ,
जनता हूँ की , मै देर हूँ,
फिर भी सोच नहीं पाता हूँ.
इन्तहा हो गयी इन्तजार की,
फिर इन्तजार है,
कोई तो आएगा,
नैया पार लगेगा .

रविवार

अपनापन !


अपनापन , सुनने में कितना अच्छा लगता है , लेकिन इसके समझने और जानने में इंसान के जीवन कई वर्ष लग जाते है , तब जाकर कितने लोग इस को समझ पाते है कितने नहीं. सबसे बड़ा सवाल यह है अपनापन का अर्थ समझना. हर कोई अपने सोच विचार कर अपनापन का परिभाषा देता है .

कोई इंसान अपने जीवन में न जाने कितने लोगों से मिलता है , न जाने कितने परिभाषा का निर्माण करता है , हर बार एक नयी सोच को जनम देता है. क्यूँ हम हर बार कही न कही , अपने पिछले विचार से अलग हो जाते है. हर बार का मिलन एक नयी अनुभब को लाता है. ऐसे में लगता है की हम तो बिलकुल ही अनजाने है. हमें तो पता ही नहीं चल पाता है की आखिर हर बार एक नहीं सोच कहा से उभर कर हमारे जीवन के सामने आ जाता है.

जैसे जैसे इंसान अपने परिवार में बड़ा होता जाता है, मतलब की अपने जिंदगी के दिनों को जीता है, और उसको अपने जीवन के जीने का जो अनुभव उसे प्राप्त होता है, आगे जाकर उसे सोचता है. बचपन में हर कोई उसे अपना लगता है , क्यूँ की उसे इस संसार के बारे में कुछ भी पता नहीं है. जैसे जैसे वो बड़ा होता है , एक इंसान को वो समझने लगता है . जो उसके हर बात को मानता है , उसे लगता है की वही सबसे प्यारा और अपना है, दुनिया की सारी खुशिया सिर्फ वही दे सकता है, वही सबसे जयादा प्यार करता है , इस दुनिया में उसके जैसा कोई नहीं है.

उम्र के साथ साथ उसका ज्ञान भी विकास के दौर में होता है. तब तक उसे ये पता नहीं होगा है की कौन उसे से क्या चाहता है . उसके इच्छा के अनुरूप कौन करता है . उनका ख्याल कौन करता है. माता -पिता का क्या फर्ज है. और वो कितना प्यार करते है . क्यूँ सारे गुण - अवगुण हमें उन्ही से मिलते हैं . हमारे घर का क्या संस्कार है. ये हम अपने बच्चे में देख सकते है. अगर हम समय के रहते अगर , अपने बच्चे को नहीं बताया या नहीं संभाला , तो शाद आप कभी भी नहीं संभाल पाएंगे. क्यूँ आगे जाकर तो हम उससे कुछ कह भी नहीं सकते , क्यूँ तब तक उसका यानि बच्चे का कान बंद हो चूका होता है. ऐसे में हम कोई अपेक्षा नहीं कर सकते है. क्यूँ की तब तक वो आप से वो बहुत दूर जा चूका होता है किसी और के पास, जहा से बुलाना आपके बश का नहीं है.

हम हमेशा से अपने बच्चे के साथ प्यार की भाषा देते है लेकिन उस प्यार के भाषा में अनुशाषण भी लाना जरुरी है , अगर ये कम हो गया तो कुछ क्या किसी भी परकार का सोचना बेबकूफी होगा.

हमारे जीवन में अनुशाषण का बहुत बड़ा योगदान है, वो हमें सबसे पहले अपने घर - परिवार से मिलता है , उसके बाद स्कूल से . अगर आप अपने बच्चे के घर से नहीं मिलेगा तो , स्कूल से जायदा की उम्मीद रखना बेकार है. क्यूँ की हमने उसकी जड़े में कमजोर कर दी है, तो ताने क्या ख़ाक मजबूत होंगे. उसमे खूब आप खाद बीज दो , क्या होगा ?

आज कल हमारे देश में भ्रष्टाचार का आग फैला हुआ है, वो एक ऐसा बीमारी है या ये कह सकते है की एक ऐसा वायरस है, जो हर जगह हर किसी को अपने शिकार में फंस रखा है, हर किसी के खून में मिल चूका है, हम कितना भी इलाज कर रहे है, वो ठीक नहीं हो पा रहा है. ऐसे में अगर हम अपने संतान को संस्कार और अनुशाषण से आगे बढाये होते तो शायद ये दिन न देखे पड़ते . क्यूँ आज जो भ्रष्टाचारी है , वो किसी ग्रह से नहीं , बल्कि हमारे ये परिवार और समाज से आया है. ऐसे हमें सबसे पहले अपने संस्कार पर ध्यान देना होगा . जब तक हम ऐसा नहीं करेंगे भ्रष्टाचार कभी भी समाप्त नहीं होगा.

चरित्र निर्माण एक ऐसे कुंजी है , ज्सिसे से हम समाज के सारे ताले खोल सकते हैं, सारे दुःख का का अंत हो सकता है. सारे पापों का अंत हो सकता है. सारे झगडे का समर्पण हो सकता है. लेकिन ये हो कैसे ? जब तक हम अपने परिवार में ये संस्कार रूपी जड़ी बूटी नहीं लायेंगे और इसके नहीं पियेंगे तब इस बीमारी से इसका इलाज नहीं होगा .

अपना और पराया का परिभाषा हर कोई इंसान समझता है. लेकिन इकतरफा , हर कोई सिर्फ अपना किनारा देखता है, अपना स्वार्थ देखता है, उसे दूसरा इंसान तबी तक अपना लगता है , जब तक उसे से वो किसी न किस प्रकार से उसे फायदा मिल रहा है. लेकिन ये अपनापन नहीं है, ये तो धोखा है, उसके जज्बातों के साथ ,उसके विश्वाश के साथ.

आज का समाज की क्या स्तिथि हो गयी है, हर कोई इससे अवगत है, लेकिन आगे बढ़ कर कौन इसको रोके, कौन कुछ करे , आज तो ये स्तिथि हो गयी है , अगर कोई इसको आगे बढ़ कर करना भी चाहता है, इस समाज के हर कोने से , ये सवाल आता है , "आखिर ये ऐसा काम क्यूँ कर रहा है, जरुर कुछ उसका फायदा होगा या हो रहा है," और उसके बाद कुछ लोग उसको भी समाज की गन्दी जंजालो से इसको परेशान का, उस काम से अलग कर देंगे.

ऐसे लोगों को तो न अपने परिवार से , नहीं इस समाज और देश से कोई अपनापन है, वो सिर्फ अपने लिए जीते हैं , आगे जाकर हमारे समाज और देश का भविष्य निर्माण की योजना बनाते है. ऐसे में देश का क्या होगा , शायद ईश्वर को भी पता नहीं होगा.

बुधवार

 आज मै क्या हर हिन्दुस्तानी स्वंत्रता दिवस कि सालगिरह मना रहा है. मै भी शामिल हूँ. लेकिन सही मायने में आजाद या स्वंत्र हूँ. क्या हमें बात रखने या बोलने का हक है. हमें भी अपने देश में , समाज में कुछ करने या कुछ बोलने का हक है.

संबिधान में जो भी कुछ लिखा है. हर कोई जानता है ये कौन बता सकता है ? मै कहता हूँ कि हम सबको अपने मूलभूत अधिकार या कर्तव्य का ज्ञान है ? हमें कौन से अधिकार मिले हैं. ये हम सबमे से कितने लोग है जितना इनको पता है . कभी हमें इसका ज्ञान होगा ? या हमें कौन जानकारी देगा.?

कोई नहीं है, न तो इसको सरकार बता सकता है , न सरकार का कोई नुमाइंदा . न ही कोई नेता जिसे हमें चुन कर अपने देश और समाज के विकास के विधान सभा और संसद भेजते हैं.

हमारे देश को आजादी मिले कितने साल हो गए. लेकिन हम उस समय से भी बहुत जयादा पिछड़ गए है. जिस तेजी से और सभी चीजों का विकास हुआ उतना हमारे देश के नागरिको और जनता का विकास नहीं हुआ. जनता या नागरिक से मतलब उन लोगों से नहीं जो हमारे जतना के 80 प्रतिशत लोगों से ताल्लुकात नहीं रखते है. वो तो आजादी से पहले से बहुत अमीर थे , अब तो उनके बारे में सोचना भी पाप है गुनाह है.

आज तो हम सब ऐसे जीते है कि पता नहीं कल दिन कैसा होगा ? क्या होगा ? कोई ऐसा है जो यह नहीं सोचता है . शायद नहीं. आज हमारे देश में इतना भय का माहोल है. जितना कि कितना सोचा भी नहीं होगा .

हमारे देश में 70 प्रतिशत लोग , दिन भर काम करते है वो उन्हें रात का खाना मिलता है . ऐसे में अगर वो किसी जुलुस या आन्दोलन के जाते है तो उनका क्या हालत होगा वो उनसे जयादा कोई नहीं बता सकता है.

हमारे देश में सबसे बड़ी समस्या है .शिक्षा . अभी भी, जब कि हमारे देश को आजादी हुए 60 साल से जयादा हो गए. लेकिन शिक्षा कि क्या स्थिति है. वो हम सब से छुपा नहीं है. शिखा का व्यवसायीकरण तो हुआ ही है. उसके साथ साथ हमारे देश कि गुरु शिष्य परम्परा और शिक्षा पद्धिति का पतन हो गया है. न कोई संस्कार है न कोई संस्कृति .

हम बदलेंगे , युग बदलेगा. बचपन से हम लोग ये सुनते आ रहे है. लेकिन क्या हम सब इस को अपने पर अमल करते हैं. नहीं . ये सिर्फ बोलने के लिए बना है. अगर ये बात जो हमें पता है , सारे रोगों का इलाज यही है. फिर उस दवा को कोई खाना नहीं चाहता , आखिर क्यूँ.

क्या उनसे दुखों से सब लोग खुश है? लगता तो यह है. अगर ऐसा नहीं होता तो हम सब इस "हम बदलेंगे , युग बदलेगा " को अपना कर अपने देश को खुशहाल बना सकते थे.

लेकिन हम ऐसा करेंगे नहीं. क्यूँ हमें मरने और मारने में मजा आता है. और मजा को कौन भूलना चाहता है. मजा चाहे दर्द से हो या खुशी से .


शुक्रवार

देशभक्ति और स्वदेशी बाजार !



आज कल जो हवा बह रही है उससे कोई अछूता नहीं है, क्यूँ हवा ही ऐसे ही नहीं है. वो देश प्रेम , देश भक्ति  और स्वदेश प्रेम , ऐसे में कोई कहा तक भाग कर जा सकता है. हर एक के दिल में देश का प्रेम कही न कही छुपा रहता है. ऐसे में कोई उसके जगाने कि कोशीश करे, इंसान न चाहते हुए भी, थोड़े समय के लिए ही, जाग ही जाता है. मेरे विचार से स्वदेशी होना चाहिए. लेकिन उसे देश प्रेम और देश भक्ति से जोड़ कर नहीं बल्कि इससे से अलग सोच देना चाहिए. !
हमारे देश में आजकल स्वदेशी बनाम विदेशी का खेल चल रहा है. कुछ तो लोग इसको देश भक्ति के साथ गन्दा खेल कर स्वदेशी सामान का बाजार तैयार कर रहे हैं. ऐसे एक लोग नहीं है, बल्कि एक पूरा समाज है जो आम इंसान से कोई ताल्लुक नहीं रखता है बल्कि उसको भावनात्मक अत्याचार और कुछ कह सकते है. आम इंसान को देश का पाठ पढ़ा कर उल्लू या मुर्ख बनाते है और अपना  सामान बेचते हैं. हम सभी देशवाशियों को यह बताना चाहूँगा कि अगर कोई भी इंसान इस तरह से देशभक्ति दिखाना चाहता है तो उसमे अंधविश्वाश नहीं किया जा सकता है.
हमारे देश बहुत सारी कम्पनी है जो अपने देश कि है. लेकिन देशप्रेम और देशभक्ति दिखा कर ऐसा कोई काम नहीं करती कि आम जनता इससे और भी जुड़े. आप इसको गलत रूप न लेकर अपने देश कि अर्थववस्था से जोड़ना चाहिए. हमारे यहाँ गोदरेज , विक्को , निरमा आदि आदि बहुत सी कंपनी है. ऐसे में आप खुद सोचिये और विचार कीजिये. हम और हमारे दोस्त के कुछ निजि विचार है जो कि मै यहाँ पर लिख रहा हूँ. 
कुछ दिनों पहले मैंने एक समाचार चैनल पर देखा कि योग गुरु रामदेव जी का प्रोडक्ट यानि उनके द्वारा संचालित कंपनी दिव्य फार्मेसी का सामान अब खुले बाजार में उपलब्ध होने जा रहा है. मै अगर सही कहू तो , उनके कंपनी का सामान पहले से ही ले रहा था जैसे दंतमंजन, आवला का जूस , मुरब्बा आदि.
मै उनके द्वारा बताया गया प्राणायाम भी करता था और अभी भी करता हूँ. क्यूँ कि उनके द्वारा बताया गया प्राणायाम से मुझे बहुत फायदे हुए हैं. लेकिन उनके योग कैंप का भागीदार नहीं बन सका, क्यूँकि उसका फीस ..... कोई  संदेह नहीं कि उनके द्वारा बताया गया योग और उनके कंपनी का सामान अच्छा नहीं है.
मेरे साथ कुछ दोस्त भी बैठे थे , तभी एक बहस छिड़ गयी , दिव्य फार्मेसी  बनाम दूसरी कंपनी.
लेकिन मुझे एक बहुत बड़ा संदेह है कि, रामदेव जी हमेशा देश , समाज और देशभक्ति कि बात करते हैं. क्यूँ और कैसे , जो मै समझता हूँ या समझ पा रहा हूँ. हमारे देश में ९० पतिशत लोग बहुत ही गरीब है. उनमे से कुछ लोग को मैं गरीबों में अच्छा मान सकता हूँ. अगर देश भक्ति कि बात करेंगे तो सबसे पहले उन ९० प्रतिशत लोगों तक मुलभुत चीजों को पहुचाएं तभी जाकर देश और देशभक्ति समझ में आएगा. चलिए मैं जो कुछ कहना चाह रहा हूँ उनको समझाते हैं, इन सबको लिखने से पहले मैं अपने दोस्तों से भी बात कि थी लेकिन वो सब के सब मुझे कुछ और ही समझा दिए. अब मै यही बातें आप सबके सामने कहना चाहता हूँ. और आप खुद सोचे कि मै गलत हूँ या सही.
रामदेव जी देशभक्ति कि बात करते हैं , वो जहा भी जाते हैं अपना योग और देशभक्ति दोनों उनके साथ चलता है. ऐसे करने और बताने के लिए बहुत कुछ है लेकिन आज हम सिर्फ उनके द्वारा निर्मित उत्पादों के बारे में बात करेंगे .क्यूँ आम आदमी कि पहुँच कहा तक है .
जो उत्पाद वो बना रहे हैं , कई और भी कंपनी है जो बना रही है, ऐसा नहीं ही कि सिर्फ उनके यहाँ ही बनती है . रामदेव जी अपने कंपनी दिव्य फार्मेसी का उत्पाद का ना तो कभी विज्ञापन देते हैं और ना कोई उनका मार्केटिंग होता है. उनका सामान फैक्ट्री से डीलर के यहाँ जाता है और डीलर से सीधे रिटेलर यानि कि दुकानदार के यहाँ पहुच जाता हैं .
अब हम उनके अलावा जो कंपनी अपना उत्पाद हिंदुस्तान में बेच रही है, उसके बारे में बात करते हैं.
सबसे पहले जो सामान बाजार में आना होता है, आने से पहले ही उसका विज्ञापन शुरू हो जाता है , उसके बात उसकी मार्केटिंग . तभी कही जाकर उसके डीलर के यहाँ आता है. फिर आपके दुकानदार के पास पहुचता है.
अब एक उत्पाद के लिए रामदेव जी और दूसरी कंपनी का कितना लागत होगा आप खुद सोच सकते हैं. मैंने कुछ लोगों यानि मार्केटिंग वालों से पूछा तो उन्होंने एक उदाहरण दिया. जो इस प्रकार हैं.
अगर कोई सामन आपके यहाँ १०० रुपए में मिलता है तो ये आप जानिये कि उसकी कंपनी कि लागत सभी टैक्स को देकर ३० रुपये हैं.
१०० रुपये में १० -१५ प्रतिशत तो आपका रिटेलर यानि का दूकानदार का होगा , ३- ५ प्रतिशत आपके डीलर / व्होलेसेलर का होगा , बाकी जो बचा वो आप समझ लो मार्केटिंग  और विज्ञापन का खर्चा हैं.
मै तो ये सोच कर घबरा गया कि इतना सारा खर्चा सिर्फ विज्ञापन और मार्केटिग पर. वाह क्या बात है.
लेकिन जब मैंने रामदेव जी दिव्य फार्मेसी उत्पादों के बारे में सोचा तो और भी आश्चर्य हुआ कि उनके उत्पादों का मूल्य फिर इतना क्यूँ. जबकि उनका तो नहीं कोई मार्किंटेग का खर्चा है, नहीं विज्ञापन का , ऐसे में सारा पैसा कंपनी कोई जाता होगा . आम आदमी तो ऐसे ही पिस रहा है और आगे भी ऐसे ही पिस्ता रहेगा. चाहे कितने रामदेव जी आये और जाए. 
फिर मैंने सोचा कि रामदेव जी और उन सब कंपनियों में फर्क क्या है. तभी मेरे एक काबिल  दोस्त ने कहा बेटा क्वालिटी देखो. यानि उत्पादों कि गुणवता देखो. चलों ये भी देखता हूँ और समझता हूँ. अगर हम गुणवता कि बात करते है फिर भी मूल्यों और लागत में इतना अंतर नहीं आ सकता है.
इसी बहस के दौरान मेरा और दोस्त और  गया , उसने कहा ऐसा है कि अगर हम देश और देशभक्ति कि बात करते हैं तो हमें अपने देशवाशियों के वारे में भी सोचना चाहिए. एक गीता प्रेस भी ही , आज भी उनकी किताबों का कीमत आम आदमी के पहुच हैं. एक रामदेव जी कि किताबों के देखों , पत्रिका देखों, आसमान से बाते कर रहा है. अब हम लोगों का बहस जयादा ही गरम हो रहा था.  अगर ऐसे में हम लोग ऐसे ही बहस करते रहते तो शायद माहोल कुछ और हो जाता .
मै भी सोचता हूँ. सभी कि अपनी अपनी राय और विचार है , हम क्या सोचते है , आप कया सोचते है. सभी का एक सामान विचार नहीं हो सकता है . अगर हम सभी लोग का विचार एक सा होता है , आज हमारे देश कि जो दुर्दशा है शायद कभी न होती . लेकिन क्या करे यही सोच कर रुक जाते है , ठहर जाते . और यही पर हमारा विकास थम जाता है, लूटने वाले किसी न किस परकार से हमें लूट कर चला जाता है . चाहे वो भावनात्मक हो या कुछ और. गलत तो आखिर गलत ही होता है . ऐसे में किसी एक को देश देना सही नहीं . इसमें हम सब जिम्मेदार हैं. रामदेव जी हो या कोई और सबको अपना व्यापार करना है बढ़ाना है . 
यहाँ  पर मै किसी विशेष पर आपेक्ष नहीं लगा रहा हूँ, ये तो हम सबका सोच है . मतलब हमारे निजी सोच है. इससे किसी पार्टी या सम्प्रदाय , समाज से लेना देना नहीं है. अगर ऐसे में किसी को  कुछ दुःख पंहुचा तो मै माफ़ी मांगता हूँ. यहाँ पर मैंने रामदेव जी के नाम उनकी कंपनी दिव्य फार्मेसी के लिए प्रयोग किया है. 



मै और मेरा घर !



बहुत दिनों से , मै सोच रहा था और जानने के कोशिश कर रहा था , हमारे देश में बहुत कुछ समस्याएं और अन्धविश्वाश जैसा वातावरण दिख रहा था . ऐसे ऐसे भी विचार हमारे मन में आ रहा था कि मै सोच सोच कर फव्याकुल हो रहा था . ऐसे ख्याल मेरे मन में क्यूँ आ रहा है. आखिर मै इतना परेशां क्यूँ हो रहा हूँ. धीरे धीरे मै भी इन सब चीजों को भूलने कि आदत डालने लगा, आखिर कब तक ऐसे ही जिया जायेगा. आखिर हम भी एक इंसान है विचार का आना और जाना लगा रहता है, ऐसे में किसी एक को बिठा कर रखने से जिदगी आगे नहीं बढ़ सकती है.
इसी को लेकन मैं एक अपने दोस्त से बात करना चाहा , उसे बताना चाहा कि आज कल मेरे मन बहुत ही अजीबो गरीब ख्याल आ रहे हैं. उसने मुझे समझाया, देखो हम सब एक इंसान है और इस समाज में रहते हैं. ऐसे में हमारा भी कुछ फर्ज बनता है .
समाज और देश के प्रति सिर्फ हमारा ही नहीं , बल्कि देश और समाज में हरएक इंसान का यही फर्ज होना चाहिए. लेकिन मैंने सोचा कि क्या सिर्फ सोचने और बोलने मात्र से हमारा देश और समाज का भला हो जायेगा ?  क्या एक दूसरे पर अपने बात नहीं मानने और काम नहीं करने का बहाना बता कर , अपना हाथ और अपने को इससे से पीछे हो जाना , इससे से  समाज और देश का भला हो जायेगा ? हमेशा दूसरे को आगे बढ़ने पर उसकी पैर खीच कर निचे गिराने के आदत से हमारे समाज और देश आगे बढ़ जायेगा. ? हम सभी अपने कर्तव्य और फर्ज को भूलते जा रहे हैं. आज हमारे समाज में न तो कोई किसी का बात सुनने और समझने के लिए तैयार है न ही समझाने के लिए , ऐसे हम क्या आशा करते है कि आसमान से आकार कर जायेगा. ऐसा बिलकुल नहीं होगा . कुछ पाने के कुछ खोना पड़ता है – ऐसा सभी लोग जानते हैं लेकिन अमल कोई करना नहीं चाहता है .
जहाँ पर देश और देश कि बात आती है, वहाँ पर हमारे कान खड़े हो जाते हैं, दिल में एक जोश सा जग जाता है. लेकिन वही कुछ देश कि लिए करने कि बात आती है , वही हमारा सोया हुआ स्वार्थ ऊपर हो जाता है. हमें अपने देशभक्ति को निजी स्वार्थ के आग में उसे जला कर राख तो बनाते ही है साथ में न जाने कितने के मन अपने और अपने जैसे लोगों के पार्टी घृणा का रोग देकर अपने देश और देशवाशियों को उसमे जलने के लिए छोड़ देते हैं.
आज हमारे देश में बहुत सारे देश भक्त और कुछ नेता लोग (जो देशभक्ति की बात करते हैं ) अपना विचार रख कर देश में कुछ नया करने कि कोशिश कर रहे हैं. सबसे पहले जब भी हम अपने हिंदुस्तान कि बात करते  हैं , सबसे पहले हमें हिंदुस्तान के सभी नागरिक को सचाई का पथ पढाना पड़ेगा , उसे जगाना पड़ेगा. ९० प्रतिशत तो लोग एक जून का खाने के लिए तरश रहे हैं. न तो उसके पास रोजगार है न कोई धंधा . ऐसे में सबसे पहले , हमें अपने उन आवश्यक चीजों को उसके पहुच तक लाने का प्रयास करना चाहिए. ताकि मूलभूत चीजे उनके पास आसानी से आ सकें. यानि मंहगाई को कर करना पड़ेगा. उसके बात हमें उसके शिक्षा पर ध्यान देना होगा उसके बात ही हम उसके स्वस्थ्य के बारे में सोच सकते हैं. ऐसे में अगर हम इन चीजों को छोड़ कर किसी और पर अगर बात करतें है तो वो  बिल्कूल बेईमानी होगी.