बुधवार

विचारों का मृत्यु !


कभी कभी मै कुछ न चाहते हुए भी कुछ सोचने और करने पर मजबूर हो जाते है. उसमे इंसान का कभी कभी जोर नहीं चलता है. इंसान क्या करे और क्या नहीं करे. आखिर ऐसा क्यों होता है , आखिर ऐसा की हो जाता है कि वो नहीं चाहते हुए भी करता है . आखिर ऐसा कौन सा मजबूरी है ?
बहुत सारे सवाल मन में घुमते रहते है. आखिर मै थक कर ये सोचने पर मजबूर हो जाता हू कि मै क्यूँ सोच रहा हूँ. हमारे देश में और भी तो बहुत लोग  है ...वो क्या सोचते है. क्या नहीं सोचते है. उसके बारे में मैं सोच कर अपना वक्त क्यूँ बर्बाद कर रहा हूँ. अपना जीवन के कीमती समय को इन सब बातो में भटका कर क्यूँ नष्ट कर रहा हूँ. !
लेकिन , क्या मै जो कर रहा हूँ या सोच रहा हूँ , यह सही है ? कभी सोचता हूँ अगर मै सिर्फ अपना ही भला सोचता हूँ तब तो ये ये सभी बातें पूरी तरह से सही है.
क्या एक इंसान सिर्फ इतना ही सोच सकता है ? क्या हमारे बीच इंसानियत खतम हो गयी है. क्या हमारे बीच से मानवता समाप्त हो चुकी है. ? क्या हम सब सिर्फ अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए जीते है.?
नहीं....बिलकुल नहीं . अगर ऐसा होता है तो ये संसार कब का संपत हो चूका होता . लेकिन फिर जीवन चक्र चल रहा है. इसका मतलब है कि अभी भी इंसानियत और मानवता बची हुई है.
सवाल यहाँ पर ये है कि वो कहा और कब देखने को मिलेगा....जब पूरी तरह से मानवता और इंसानियत समाप्त होने के कगार खड़ा होगा ? अगर ऐसा है तो ....कुछ नहीं होगा है ....अगर किसी को बचाना हो तो मरने से पहले उसका इलाज करो....मरने के बाद इलाज करने से क्या मिलेगा.....जिदा लाश !
आज हमारे समाज का क्या दशा और दिशा है , सभी लोग इस परिचित है ..कोई भी इंसान इस से अछूता नहीं .......चाहे वो किस भी समाज से रहता हो. छोटे या बड़े सभी लोग में से कुछ लोग इससे से चिंतित है...मै कुछ लोग कहुगा कि जो सबसे ऊपर है ..उन्हें वो लगता है ..कि समाज से या में मैं नहीं ...समाज मुझसे है या चलता है ....और जो एक दम से निचे से आ रहे है....वो इसके प्रति चिंतित नहीं है ..क्यूँ कि उनको न कुछ पता है और न वो कुछ पता करना चाहते है. क्यूँ उनको कुछ मतलब नहीं है ...उनका सीधा सवाल है, समाज ने मुझको दिया क्या ? जो मै समाज से जुदा हुआ मानूं.
तब ऐसे में बचे बीच वाले भाई साहेब... अब वो तो ऐसे फंसे है...जिनका कोई हल नहीं है..उन्हें सांप और छुछुन्दर कि तरह फसे गए है...न तो वो निगल सकते हैं. न उगल (बाहर कर ) सकते है. ऐसे स्थिति में क्या कर सकते हैं. अगर जयादा कुछ करने कि कोशिश करते हैं. समाज के नियम उन्हें पूरी तरह से बाँध देती है. अगर कुछ नहीं करे तो समाज उन्हें जीने नहीं देगा.
आज का समाज , इतने कुंठित हो चूका है कि ....हर इंसान एक दूसरे से कट कर रहना चाहता है...पूरी तरह से पेड के टूटे पत्ते के तरह उससे से अलग हो कर स्वंत्र रहना चाहता है. ऐसे में उस पेड़ का क्या हाल होगा ....जो उसमे पत्ते ही नहीं तो उसको पेड़ कौन कहेगा...उसकी पहचान क्या रहेगी. एक दिन ऐसा समय आयेगा ....जब उसका अस्तित्व समाप्त हो जायेगा. फिर इंसान का ,,,,,संसार का हर एक जीव खुद व् खुद समाप्त हो जायेगा.
आज हम सबको एक जुट हो कर परिवार और समाज को विखरने और टूटने से बचाना है. इसके लिए हमें ही कुछ करना पड़ेगा...कोई आसमान से आकार नहीं करेगा.
हमारे समाज में कुछ ऐसे ही प्राणी होते है ...हर हमेशा देश और समाज कि बात करते रहे है...जब समाज को इनकी जरुरत होती है ...तब इनका पता नहीं होता है .ऐसे में इन जैसे लोगों से भी हमारे समाज को बहुत ही बाधा खतरा है.
आज हमारे देश में पचिमी सभ्यता का बहुत प्रभाव बढ़ता चला जा रहा है. वो दिन दूर नहीं , जब हम पूरी तरह से इस डूब चुके होंगे क्यूँ कि..आज हमारे देश के सभी बडे शहर तो इससे से अछूते नहीं है...धीरे धीरे अब हमे छोटे – छोटे शहर में अपना पांव पसर रहे है., जिस दिने ये गांव में पहुच गए है...समझिए कि पूरी तरह से हमारे भारत वर्ष कि संस्कृति और सभ्यता संपत हो जायेगी.
मै कही और किसी कि सभ्यता को गलत निगाह से नहीं देख रहा हूँ और नहीं बुरा कह रहा हूँ. अगर अच्छी चीजे कही से मिले तो उसे अवश्य लेना चाहिए. आज पूरा संसार हमारे संस्कृति सभ्यता के कायल है. और हम है कि अपने को भूल कर दूसरे को अपनाने में लगे हुए है.
बिखरता समाज और टूटता परिवार ये दोनो ये हमारे देश के लिए विकट समस्या है. अगर हम लोग इस पर ध्यान नहीं दिए तो वो दिन दूर नहीं , जब घर के अलावा कुछ नहीं दिखेगा..
आज कल ये भी सुनने में आ रहा है कि ...बच्चे अपने माता –पिता को अपने साथ रखना नहीं चाहते है.वो या तो उन्हें अपने घर से दुर किसी और घर में या वृधा आश्रम में डाल देते है. अगर जायदा कुछ होता है तो वो कही और छोड़ कर चल देते हैं. ऐसे में उन पर क्या बीतती है. वो उनके अलावा कोई बता नहीं सकता है.
बच्चे जवान होते नहीं कि अपने घर से दूर रहना पसंद करने लगे हैं..अब सोचिये कि अगर ऐसे दशा रही तो हमारे वर्षों पुरानी समाज कि वो परम्परा का क्या होगा है . वो संयुक्त परिवार का क्या होगा ?
ये एक गंभीर समस्या है. अगर हम समय रहे नहीं समझे और कोशिश किया तो ....हमारे देश और समाज का क्या होगा कोई नहीं जानता है...
आप बहुत से परिवार देखें होंगे और देखेंगे , वो बात तो बहुत बड़ी बड़ी करेंगे लेकिन वो इन सब कामो में बहुत आगे रहेंगे.
हमारा देश भारतवर्ष पुरे संसार अपने सनातन धर्म और संस्कृति-सभ्यता के लिए जाना जाता जाता है. लेकिन आज के समय में वही सब नष्ट होने के कगार पर है. यहाँ का हर नागरिक अपने अपने अनुकूल नियम –कानून बना कर कम करता है...जो सोचता है..वही सभ्यता है वही संस्कृति है. और यहाँ तक जो लिख दिया वही संबिधान है.


3 टिप्‍पणियां:

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