मंगलवार

मायने अपने अपने

कल बहुत दिनों के बाद मैं किस टीवी पर डिबेट देखा।  चैनल का नाम इंडिया न्यूज़ था बहस का मुद्दा कल के दिए हुए बयां जो की माननिये सुप्रीम कोर्ट यानि की उच्चतम न्यायालय ने दिया था साईं और शंकराचार्य के बीच चल रहे मुद्दे को लेकर।

जो मैंने देखा उसे मैंने क्या समझा वही मैं यहाँ पर लिखना चाहता हुँ. होस्ट कर कर रहे मिस्टर अभिनव का भी कुछ  संवाद और बोलने का ढंग सही न था।  वो हमेशा साईं और साईं के भक्त का पक्ष ले रहे थे।  उनकी बातों से मुझे यही लगा , आप चाहे तो देख सकते हैं. मैंने उनके वेब साइट से लिंक लेकर यहाँ पोस्ट किया है.

अब आते हैं वह बैठे कुछ लोग पर जो बहस में भागे लिए थे।
१. श्री रमेश जोशी जी - जिन्होंने या पिल कोर्ट में दिया था और पुरे बहस में कुछ जगह को छोड़ कर शांत थे।
२. श्री रावत जी - (शंकरचार्य समर्थक ) - आवाज उची थी पर वो अपशब्द का इस्तेमाल नहीं कर रहे थे।  जो भी कह रहे थे मर्य्यादा में रहते हुँ. ।
३. श्री महामंडलेश्वर नरेश जी - शांत स्वभाव के सही बातों के चयन करते हुए सही बात कह रह थे।
४. मिस्टर संजय  - मैं यहाँ श्री और जी का इस्तेमाल जान बूझकर नहीं कर रहा हूँ कि ये महाशय दोनों को योग्य नहीं है. नहीं तो भाषा के ज्ञान और नहीं तो संस्कृति और सभ्यता की बुझ. गीरी  हुई शब्दो के चयन।  सबसे पहल देश का नागरिक होते हुए अगर ोकोई बाँदा सामान सहिंता की बात करे तो वो देश और समाज का दुश्मन।  और कोई अपने इष्टदेव का मंदिर बनवाए तो वो देश और  दुश्मन. वाह रे मानसिकता।  राजनीती से ओट प्रोत इनका दिमाग है. इस बहस में इन्होने ३७० और श्री राम मंदिर की बात भी बीच में उठाया थ. क्या इनकी सोच है  हर कोई जानता है।  जो इंसान इस देश में है उसका हक़ है की वो सामान नागरिक संहिता की बात कर सकता है।  पहले इस देश का नागरिक बाद में वो धर्म गुरु और कुछ और है. लेकिन इस महाशय को तो इस धर्म की बात में भी राजनीती करनी है।
और एक बात इस महाशय ने कहा था की चांदी के आसान और विलासता सम्बन्धी चीजो इसतेमाल कर क्या साबित करना चाहते है।  शंकराचार्य ही सिर्फ सनातन धर्म के रखवाले नहीं है है.

बात सही है की आज धर्म के गुरुओं ने सनातन धर्म की फजीहत की हिा. ऐयाशी भरा जीवन जीते है. लेकिन ये बाते साईं जी पर नहीं लागु हःती है.

आज जितने भी मंदिर हैं उसमे में सभी में आस्था काम व्यापार जयादा है. उन सबमे सबसे जयादा वयापार कंेद्र है साईं मन्दिर. आप घर जगह देखे साईं मंदिर व्यापर का केंद्र खुला हुआ मिलेगा.

मंदिर को इन सब ने मिलकर दुकान बना दिया है. और मिस्टर संजय आपका भी रोजी रोटी आईएनएस दुकानो से ही चल रहा है।  आपको बुरा लग रहा है पर ये सच्चाई है. आप चाहे इसके लिए मुझे जो कहो या करो पर ये सच्चाई है.

आप एस्ट्रोलोजर तो ही है पर आपकी मानसकिता पर मुझे सवाल है.  अगर कोई देश और समाज की बात करे तो गलत और आप सही  है.  अगर इतना ही सही भक्त हो तो जिस तरह का भाषा का इस्तेमाल इस बहस में किया है।उस्से देख कर लगता है की आप कौन हो।  राजनीती से उठ कर और साईं जी के नाम का दुकान से हैट कर कुछ अच्छी मानसिकता के साथ देश और समाज में योग दो।  मैं जयादा तो नहीं जानता लेकिन जो समझता हूँ उसे से तो यही अच्छा लगता है. मुझे तो तज्जऊब लगता है कैसा देश है मेरा जो आप जैसे मानसिकता वाले लोग को ऐसे बहस में बुला लेता हैं. जहाँ देश की हिट में बात करने पर वो दुश्मन हो जाता है. क्या इसे बात पर गर्व हो.

ऐसे मानसिकता को लेकर हिंदुस्तान जैसे देश में ही आपकी दुकान चल सकती है.

५. दीदी सोनिया जी  - सादगी तो नहीं पर शांत स्वभाव पर जयादा देर तक सहने की शक्ति नहीं।
६. चक्रपाणि जी - देखने में तो संत पर संत जैसे कोई गुण  नहीं।  सिर्फ दूसरों को उदेश देना अपने उअपर कोई जोड़ नहीं।  दुनिया और सनातन धर्म के अंधकर में ल जाकर अपनी दाल रोटी चलना।  यही उद्देशय है इन महाशय का / इस से जयादा इनके बारे न बोलूं तो सही है।  क्यों आईएनएस जैसे धर्म गुरुओं ने ही सनातन धर्म का बंटाधार किया हिा. साथ में मिल जाते है मिस्टर संजय जैसे नमक मिलाने वाले।  और अपनी दुकान चला कर ऐश भरी जिद्गगी बिताते हैं.

गलती हमारे समाज की है जो इन जैसे लोगों को हम बढ़ावा देते हैं।  अब समय आ गया अपने धर्म और देश के बारे में जानने की समझने की।  अगर हम लोग नहीं समझेंगे तो पता नहीं इन जैसे लोग सनातन धर्म को बेच कर क्या कर डालेंगे।

अगर मेरी बातों से किन्ही क बुरा लगा हो तो मैं माफ़ी नहीं मांग रहा हुँ. जो मैंने देखा, वही लिखा है. अगर फिर भी बुरा लगा है तो मैं माफ़ी मांग सकता हुँ.
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