शनिवार

अस्मिता का सवाल !

कितनी विडंबना है , की हमारे देश में ही , हमारे देश का, मान का , सम्मान का , जीने की उद्देश्य का ,  मर -मिटने का जज्बा और जोश भरने वाला ,  एक और एक करने वाला, उस तिरंगे का इज्जत और सम्मान न मिले!

इस तिरंगे के जो अपने आप को कुर्बान कर दिए . क्या वो व्यर्थ हो गया ? वो कुर्बानी बेकार चली गयी ?  क्या वो गीत जिससे हर हिन्दुतानी जो अपने देश और अपने इस मिटटी से प्यार करता है , वो बेकार है . व्यर्थ है .
हम अपने आगे आने वाली पीढ़ी को क्या बताएँगे . अपने जान - शान - मान से भी ऊँचा हमारा तिरंगा कोई अपमान करे और हम सहन करे और करते रहेंगे .

आखिर कब तक ?

कोई  भी यहाँ पर आकर किसी आतंकी का झंडा लहरा जाता है ,  हम और हमारा समाज , हमारा प्रशाशन सब देखता रहा है,  वाह रे ...... आखिर ऐसा क्यूँ होता है ?  कौन है जो इस तरह का ख्याल अपने जेहन में लाता है,  अगर लाता भी है तो , इसे अपने देश में , अपने ही समाज में , उसका लहराने का प्रयास ही नहीं, बल्कि लहराता है ,  क्यूँ ?  क्या इस देश की संप्रुभता पर विस्वास नहीं है, संबिधान पर विस्वास नहीं है , देश की अखंडता पर विश्वास नहीं  है , या फिर ,,,वो इस देश को तोड़ने में विश्वास रखता है, कौन है ,,,वो .....गद्दार ,,,,कौन है वो ,,,,,बदनसीब जो इस हिन्दुस्तान को टुकड़े करना चाहता है..........कौन है वो .....कौन है वो ......आखिर क्या चाहता है....वो १९४७  वाला बटवारा ......नहीं ...वो समय कुछ और था .....अब समय कुछ और है........

अब न वो गाँधी है ,,,न वो कोई और ....अगर एक गाँधी है ,,या यहाँ तो ,,,,,सुभाष , आजाद और भगत की कमी नहीं है,,,,,,,,,,

अब समय आ गया ....जागने का ......

बहुत हो गया अपमान तिरंगे का ....
बहुत हो गया सम्मान  का दुश्मनों का .
बहुत हो गया कल्याण भगोड़ो का ,
बहुत जल गया तिरंगा
बहुत जल गया समाज.


आओ अब मिलकर कुछ करे इससे पहले की देर हो जाए ...







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