बुधवार

तस्वीर: गलती किसकी -1

हम जिस समाज और देश में रहते हैं, प्राचीन काल से हमें ये सन्देश और सुभाषित सुनने को मिलता है। जन्म भूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। जन्मभूमि को देवभूमि भी कहा जाता है।
जननी जन्मभूमि च स्वर्गादपि गरीयसी।
लेकिन लगता है की हम ऐसा समझते हैं, सोचते हैं। नहीं। बिलकुल नहीं। हम सिर्फ विचार करते हैं। वो भी कहाँ , वहां जहाँ पर कोई भी इस बात को समझने वाला नहीं होता है।
आज हमें अपने समाज और देश की दशा और दिशा दोनों को बदलने और उसमे सुधार लाने की आवश्यकता हो रही है ।
हम अगर अपने समाज और देश की प्राचीन परम्परा और संस्कार को देखें और समझे तब ये सब हमारे समझ और व्यक्तित्व में आएगा।
आज हमें अपने संस्कारों में एक बार झांकना होगा की अपने समाज और देश के भविष्यों के साथ कितना बढ़ा धोखा और खिलवाड़ कर रहे हैं।
अपने समाज और देश के भविष्य हमारे बच्चे हैं । क्या हमें लगता है की हम सब उचित दिशा में बच्चों के ले जा रहे हैं। नहीं। सिर्फ व्यवसायिक दृष्टि से हम सोच रहे हैं।
पैसा जरुरी है लेकिन संस्कार बेचकर नहीं। संस्कार के कीमत पर हमें धन नहीं चाहिए।
आज का इंसान सिर्फ पैसा और पैसा के पीछे है, लेकिन क्या आपको लगता है की पैसा ही सबकुछ है। पैसा आपकी जरुरत पूरी कर सकता है लेकिन आत्मसंतुष्टि नहीं। शांति नहीं मिल सकती है।
आज हमें सोचना है अपने समाज और देश के लिए। अपने भविष्य के लिए। भूतकाल के गलतियों से  सीखकर अपने वर्तमान को सुधार कर अपने भविष्य का निर्माण कर सकते हैं
जय हिन्द । जय भारत। वंदे मातरम्।

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